"इटावा कथा वाचक अपमान कांड: क्या भागवत कथा कहने का अधिकार सिर्फ एक जाति का है?"

भारत में धार्मिक आयोजनों का एक विशेष स्थान है। लेकिन जब धर्म, जाति और संकीर्ण सोच के साथ मिल जाए, तो वह समाज में ज़हर घोल देती है। ऐसा ही एक शर्मनाक और झकझोर देने वाला मामला उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के दादरपुर गांव से सामने आया है, जिसे अब "इटावा कथा वाचक अपमान कांड" कहा जा रहा है।

क्या है इटावा कथा वाचक अपमान कांड?

यह मामला 22 जून का है, जब कानपुर निवासी कथावाचक मुकुट मणि सिंह यादव अपने साथी के साथ इटावा जिले के दादरपुर गांव में भागवत कथा कहने पहुँचे थे। गांव के एक व्यक्ति ने 21 से 27 जून तक भागवत कथा के लिए बुकिंग की थी। लेकिन जैसे ही कथावाचकों ने बताया कि वे यादव बिरादरी से हैं, गांव के कुछ कथित "ब्राह्मण समुदाय" के लोगों ने उन्हें कथावाचन से रोक दिया और बुरी तरह अपमानित किया।

कथावाचकों का आरोप है कि उनके साथ जातिगत भेदभाव, मारपीट, बाल काटना, और धार्मिक अपमान किया गया। उन्हें गालियां दी गईं, ₹25,000 का जुर्माना लगाया गया, उनके गहने और अंगूठी छीन लिए गए, और यहां तक कि उन पर गौमूत्र छिड़क कर "शुद्धिकरण" का तमाशा भी किया गया।

जाति और धर्म का यह कैसा मेल?

यह घटना सवाल उठाती है कि क्या धर्म पर किसी जाति विशेष का ठेका है? क्या भागवत कथा सिर्फ ब्राह्मण ही कह सकते हैं? अगर कोई व्यक्ति अच्छे से धर्म की व्याख्या कर सकता है, तो क्या उसकी जाति से उसका ज्ञान छोटा हो जाता है?

इटावा कथा वाचक अपमान कांड इस बात का सजीव प्रमाण है कि आज भी समाज में जाति की जड़ें कितनी गहरी हैं। गांववालों ने यह कहते हुए हमला किया कि "तुम यादव हो, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ब्राह्मणों के गांव में कथा कहने की?"

पुलिस की कार्रवाई और गिरफ्तारियां

घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तो पुलिस हरकत में आई। एसएसपी बृजेश कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि वीडियो के आधार पर चार लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है, जिनमें मुख्य आरोपी निक्की भी शामिल है, जो वीडियो में कथावाचकों के बाल काटते हुए दिख रहा है।

थाना बकेवर में सुसंगत धाराओं में एफआईआर दर्ज की गई और मामले की जांच चल रही है।

राजनीतिक प्रतिक्रिया और अखिलेश यादव का बयान

इस मामले ने जब तूल पकड़ा तो समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने लखनऊ में पीड़ित कथावाचकों को सम्मानित किया। उन्होंने कहा:

“भागवत कथा अगर कोई भी सुन सकता है, तो कोई भी कह भी सकता है। यह अधिकार किसी एक जाति का नहीं हो सकता।”

उन्होंने पीड़ितों को ₹1,21,000 की आर्थिक सहायता दी और ढोलक व हारमोनियम गिफ्ट किए। इसके बाद ₹51,000 और देने का वादा किया।

अखिलेश यादव ने केंद्र सरकार और बीजेपी पर भी निशाना साधा और कहा कि अगर ये लोग मानते हैं कि केवल एक जाति को ही कथा कहने का अधिकार है, तो इसके लिए कानून बना दें।

मामले में नया मोड़: यौन उत्पीड़न का आरोप

जब यह मामला सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में गूंज रहा था, तभी एक नया मोड़ आया। एक महिला पुलिस के पास पहुंची और आरोप लगाया कि कथावाचकों ने उसके साथ यौन उत्पीड़न किया। उसने बताया कि कथावाचक भोजन के बहाने उसके घर आए और वहां अभद्र व्यवहार किया। महिला के अनुसार, वह शांत रही क्योंकि उस समय भागवत कथा खंडित हो सकती थी।

अब पुलिस इस मामले की जांच इस नए एंगल से भी कर रही है।

समाज को किस दिशा में ले जा रही है यह सोच?

इटावा कथा वाचक अपमान कांड सिर्फ एक घटना नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि हमारे समाज में जातिगत भेदभाव आज भी किस कदर मौजूद है। जब कोई धार्मिक कार्य करने वाला व्यक्ति केवल इसलिए अपमानित हो क्योंकि वह किसी खास जाति से नहीं है, तो यह न सिर्फ संविधान के खिलाफ है, बल्कि मानवता के खिलाफ भी है।

धर्म को जाति से जोड़ने वाले लोग न तो धर्म के हितैषी हैं और न ही समाज के। उन्हें यह समझना होगा कि भागवत, गीता या वेद किसी एक वर्ग की संपत्ति नहीं हैं। ये पूरे मानव समाज की विरासत हैं।
 
इटावा की यह घटना केवल मुकुट मणि और उनके साथी के बाल काटने तक सीमित नहीं है, यह समाज की सोच पर भी एक बड़ा सवाल है।

अगर कथा सुनने का अधिकार सबको है, तो कहने का क्यों नहीं?

हमें यह तय करना होगा कि धर्म को ज्ञान और भक्ति से जोड़ा जाए, न कि जाति और वर्चस्व से। अन्यथा, यह आग किसी एक गांव की नहीं रहेगी, यह पूरे देश में फैलेगी।


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